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RBI ने जारी किये NPA और लोन EMI चुकाने की समय सीमा के नए नियम RBI New Rules

By Satish Kumar

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RBI New Rules

RBI New Rules – आज के समय में बैंक से लोन लेना बहुत ही आम हो गया है। घर खरीदना हो, कार लेनी हो, बच्चों की पढ़ाई करनी हो या बिज़नेस शुरू करना हो – हममें से ज़्यादातर लोग इन ज़रूरतों को पूरा करने के लिए बैंक से कर्ज लेते हैं। लेकिन बहुत से लोगों को ये नहीं पता होता कि अगर लोन की किश्तें समय पर नहीं चुकाई गईं, तो क्या हो सकता है। रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) के नियमों के अनुसार अगर कोई व्यक्ति लगातार 90 दिनों तक अपनी लोन EMI नहीं चुकाता, तो उसका लोन अकाउंट NPA यानी नॉन-परफॉर्मिंग एसेट घोषित कर दिया जाता है।

NPA क्या होता है और ये कैसे तय होता है?

NPA का मतलब है ऐसा लोन या एडवांस जिस पर समय पर ब्याज या मूलधन का भुगतान नहीं हुआ हो। RBI के मुताबिक अगर कोई कर्जदार तीन महीने यानी 90 दिनों तक अपनी EMI नहीं भरता है, तो बैंक उस लोन को NPA घोषित कर देता है। यह नियम बैंकों पर लागू होता है, जबकि अन्य वित्तीय संस्थानों के लिए यह समयसीमा 120 दिन की होती है। इस तरह के लोन को बैंक डूबता हुआ कर्ज मानते हैं, क्योंकि इससे बैंक की कमाई और आर्थिक स्थिति पर सीधा असर पड़ता है।

NPA के प्रकार

जब किसी लोन को NPA घोषित किया जाता है, तो उसे तीन स्टेज में बांटा जाता है – सब-स्टैंडर्ड, डाउटफुल और लॉस एसेट्स। पहले एक साल तक उस लोन को सब-स्टैंडर्ड माना जाता है। अगर एक साल के अंदर भी भुगतान नहीं हुआ तो वो डाउटफुल बन जाता है। और अगर बैंक को लगता है कि अब इस पैसे की वसूली मुश्किल है, तो उसे लॉस एसेट घोषित कर दिया जाता है। ध्यान देने वाली बात ये है कि NPA सिर्फ एक स्टेटस होता है, इसका मतलब ये नहीं कि बैंक ने अपने पैसे को पूरी तरह डूबा मान लिया है। बैंक वसूली के प्रयास लगातार करते रहते हैं।

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कर्जदार पर NPA का असर

अगर किसी का लोन NPA घोषित हो जाता है तो सबसे पहला और बड़ा असर उसकी क्रेडिट हिस्ट्री और सिबिल स्कोर पर पड़ता है। सिबिल स्कोर वह नंबर होता है जो यह बताता है कि आप भविष्य में लोन चुकाने लायक हैं या नहीं। अगर यह स्कोर खराब हो गया तो भविष्य में किसी भी बैंक या वित्तीय संस्था से लोन लेना मुश्किल हो सकता है। और अगर लोन मिल भी गया तो उसकी ब्याज दर काफी ज़्यादा हो सकती है। यानी आपका फाइनेंशियल प्लान पूरा बिगड़ सकता है।

बैंक क्या कार्रवाई करता है जब लोन NPA बन जाए?

अगर कोई लोन NPA बन जाता है तो बैंक पहले आपको रिमाइंडर और नोटिस भेजता है कि आप अपनी बकाया रकम चुका दें। अगर उसके बाद भी भुगतान नहीं होता तो बैंक SARFAESI Act के तहत कानूनी कार्रवाई कर सकता है। इस एक्ट के ज़रिए बैंक कोर्ट की मदद के बिना आपकी गिरवी रखी गई संपत्ति को जब्त कर सकता है और उसकी नीलामी कर सकता है। यह बैंक का आखिरी तरीका होता है जब बाकी सभी रास्ते काम नहीं आते।

NPA से कैसे बचा जाए?

NPA से बचने का सबसे आसान तरीका है कि आप अपनी EMI समय पर चुकाएं। लेकिन अगर आप किसी फाइनेंशियल दिक्कत में हैं, तो बैंक से छुपने की बजाय उनसे संपर्क करें। ज़्यादातर बैंक ऐसी स्थिति में मदद के लिए तैयार रहते हैं और आपकी लोन की शर्तों में बदलाव कर सकते हैं। इसे लोन रिस्ट्रक्चरिंग कहा जाता है, जिसमें आपकी EMI कम की जा सकती है या समय बढ़ाया जा सकता है। ध्यान रखें – समय पर बैंक से बात करने से आप बड़े संकट से बच सकते हैं।

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बैंकिंग सिस्टम पर NPA का असर

NPA का असर सिर्फ कर्जदार तक सीमित नहीं रहता, बल्कि यह पूरे बैंकिंग सिस्टम और देश की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता है। जब बैंकों के पास ज़्यादा NPA हो जाते हैं, तो उन्हें उन पर प्रावधान बनाना पड़ता है यानी एक रिज़र्व रखना होता है। इससे बैंकों की कमाई घटती है और वे नए लोन देने से कतराते हैं। इसका सीधा असर देश के आर्थिक विकास पर पड़ता है।

सरकार और RBI की पहलें

सरकार और RBI ने NPA की समस्या से निपटने के लिए कई बड़े कदम उठाए हैं जैसे कि IBC (इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड) लागू करना, SARFAESI एक्ट में बदलाव, और डेट रिकवरी ट्रिब्यूनल (DRT) की स्थापना। इन उपायों से बैंकों को फंसे कर्ज की वसूली में मदद मिलती है। साथ ही बैंकों को यह सलाह भी दी जाती है कि वे लोन देने से पहले कर्जदार की साख की अच्छे से जांच करें ताकि भविष्य में NPA की समस्या ना हो।

NPA बैंकिंग सेक्टर के लिए एक गंभीर चुनौती है जिसका असर आम आदमी से लेकर सरकार तक सभी पर पड़ता है। अगर आप लोन लेने जा रहे हैं या पहले से ले चुके हैं, तो हमेशा ध्यान रखें कि समय पर भुगतान करें और वित्तीय अनुशासन बनाए रखें। किसी भी परेशानी में तुरंत बैंक से संपर्क करें – यही समझदारी और सुरक्षित तरीका है।

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Disclaimer

यह लेख सिर्फ सामान्य जानकारी के उद्देश्य से लिखा गया है। यह किसी तरह की वित्तीय या कानूनी सलाह नहीं है। किसी भी वित्तीय निर्णय से पहले अपने वित्तीय सलाहकार या बैंकिंग विशेषज्ञ से सलाह ज़रूर लें। आरबीआई के नियम समय-समय पर बदल सकते हैं, इसलिए अधिकृत स्रोतों से जानकारी लेना आवश्यक है।

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