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चेक बाउंस मामले में हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, अब ये नोटिस होगा मान्य Cheque Bounce News

By Satish Kumar

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Cheque Bounce News – अगर किसी का चेक बाउंस होता है, तो कानूनी तौर पर उसे एक नोटिस भेजना जरूरी होता है। अब तक इस नोटिस को भेजने का तरीका लेकर लोगों के मन में काफी उलझन थी – डाक से भेजें, ईमेल करें या व्हाट्सएप से भेजा जाए? इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अब इस कन्फ्यूजन को दूर कर दिया है। कोर्ट ने साफ कह दिया है कि ईमेल या व्हाट्सएप से भेजा गया नोटिस भी कानूनन मान्य है, बस एक शर्त है – सबूत होना चाहिए कि आपने वो नोटिस भेजा और सामने वाले को मिला भी।

क्या था मामला?

राजेंद्र यादव बनाम उत्तर प्रदेश सरकार केस में ये मुद्दा सामने आया था। पुराने जमाने में नोटिस सिर्फ पंजीकृत डाक से भेजे जाते थे, लेकिन आजकल तो हर काम डिजिटल हो गया है। ऐसे में सवाल उठा कि क्या व्हाट्सएप या ईमेल से भेजा गया नोटिस भी मान्य होगा? इस पर कोर्ट ने कहा, हां – अगर सही तरीके से भेजा गया हो और उसका रिकॉर्ड हो, तो वो भी ठीक है।

हाईकोर्ट ने क्या कहा?

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 का हवाला देते हुए कहा कि नोटिस लिखित होना चाहिए, लेकिन ये कहीं नहीं लिखा कि वो सिर्फ डाक से ही भेजा जाए। कोर्ट का कहना है कि अगर नोटिस ईमेल या व्हाट्सएप जैसे डिजिटल माध्यम से भेजा गया है, और अगर उसका पुख्ता सबूत है, तो वो भी लीगल माना जाएगा।

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कानूनी आधार क्या है?

कोर्ट ने अपने इस फैसले को मजबूती देने के लिए आईटी एक्ट और इंडियन एविडेंस एक्ट का सहारा लिया। आईटी एक्ट की धारा 4 और 13 बताती हैं कि इलेक्ट्रॉनिक तरीके से भेजी गई जानकारी भी वैध होती है, जब तक उसका प्रूफ हो। वहीं एविडेंस एक्ट की धारा 65B के मुताबिक, इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड भी सबूत माना जा सकता है। मतलब साफ है – डिजिटल जमाने में कानून भी अब डिजिटल सोच अपना रहा है।

जजों के लिए भी गाइडलाइन

कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के मजिस्ट्रेट्स और जजों के लिए एक खास हिदायत दी है – जब भी चेक बाउंस केस की सुनवाई हो, तो ये जरूर चेक करें कि नोटिस सही तरीके से भेजा गया था या नहीं। यानी अब कोर्ट में भी डिजिटल नोटिस की वैलिडिटी को ध्यान में रखकर केस सुने जाएंगे।

डिजिटल नोटिस भेजने के कुछ नियम भी हैं

कोर्ट ने हां तो कहा, लेकिन साथ ही कुछ शर्तें भी रखीं। सबसे जरूरी बात – नोटिस भेजने का सबूत होना चाहिए। जैसे कि ईमेल भेजने की रिपोर्ट, स्क्रीनशॉट, व्हाट्सएप मैसेज का स्टेटस, या डिलीवरी का प्रूफ। आईटी एक्ट के मुताबिक, जब तक आपके पास भेजने और डिलीवर होने का सबूत नहीं होगा, तब तक ये नोटिस लीगल नहीं माने जाएंगे। इसलिए बस फॉरवर्ड करके छोड़ देने से काम नहीं चलेगा – आपको प्रूफ संभालकर रखना पड़ेगा।

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इस फैसले का असर क्या होगा?

इस फैसले से बहुत बड़ा बदलाव आएगा, खासकर उन लोगों के लिए जो फाइनेंशियल ट्रांजेक्शन में चेक का इस्तेमाल करते हैं। अब नोटिस भेजने के लिए डाकघर की लाइन में लगने की ज़रूरत नहीं – आप ईमेल या व्हाट्सएप से भी नोटिस भेज सकते हैं, वो भी पूरी तरह से वैध तरीके से। इससे समय भी बचेगा और प्रोसेस भी तेज होगी।

अब यूजर्स को भी सतर्क रहना होगा

इस फैसले के बाद अब सबको अपने ईमेल और व्हाट्सएप को थोड़ा सीरियसली लेना होगा। अगर आपने किसी का चेक बाउंस किया और उसने आपको ईमेल या व्हाट्सएप पर नोटिस भेजा, तो उसे इग्नोर करने की गलती मत करना। क्योंकि अब ये डिजिटल नोटिस भी कानूनी रूप से मजबूत हो गए हैं और आपके खिलाफ कार्रवाई हो सकती है।

कुल मिलाकर देखा जाए तो ये फैसला दिखाता है कि अब हमारी न्यायिक व्यवस्था भी समय के साथ बदल रही है। डिजिटल युग में जहां हर काम मोबाइल या कंप्यूटर से हो रहा है, वहां कोर्ट ने भी टेक्नोलॉजी को अपनाकर एक बड़ा और जरूरी कदम उठाया है। हां, आपको बस एक बात का ध्यान रखना है – जो भी भेजें, उसका सबूत जरूर रखें।

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डिस्क्लेमर:
यह लेख केवल जानकारी के उद्देश्य से लिखा गया है। किसी भी कानूनी निर्णय से पहले योग्य वकील से सलाह जरूर लें। इसमें दी गई जानकारी का उपयोग करने से पहले उसकी पुष्टि कर लें, लेखक या प्रकाशक किसी भी प्रकार की ज़िम्मेदारी नहीं लेते।

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