Income Tax Rule – इस साल के बजट में सरकार ने आम करदाताओं को कई बड़ी राहतें दीं। सबसे खास बात यह है कि 12 लाख रुपये तक की सालाना आय को करमुक्त किया गया, जिससे मध्यम वर्ग को काफी फायदा हुआ। वहीं, दिल्ली हाईकोर्ट के हालिया फैसले ने भी करदाताओं के लिए एक और बड़ी खुशखबरी लेकर आई है। कोर्ट ने साफ कर दिया है कि अब आयकर विभाग पुराने मामलों को मनमाने तरीके से नहीं खोल सकेगा। यह फैसला उन लाखों करदाताओं के लिए वरदान साबित होगा, जिन्हें पहले पुराने मामलों की वजह से अक्सर परेशान होना पड़ता था।
आयकर विभाग की मनमानी पर अब रोक
आयकर विभाग पर हमेशा से आरोप लगते रहे हैं कि वह बिना ठोस वजह पुराने मामलों को फिर से खोलकर करदाताओं को परेशान करता है। कभी-कभी तो सिर्फ अंदाज के आधार पर भी नोटिस भेजा जाता था, जिससे लोगों को मानसिक और वित्तीय दोनों तरह की दिक्कतें होती थीं। लेकिन अब दिल्ली हाईकोर्ट ने यह तय किया है कि विभाग अब अपनी मर्जी से पुराने मामलों को नहीं खोल पाएगा। इसे नियमों के दायरे में रखा जाएगा और बिना मजबूत सबूत के कोई भी मामला दोबारा जांच के लिए नहीं आएगा।
तीन साल की समय सीमा में सीमित होगा सामान्य मामला
अब आम मामलों में आयकर विभाग के लिए तीन साल की सीमा तय कर दी गई है। इसका मतलब है कि विभाग केवल तीन साल के अंदर ही सामान्य मामलों को दुबारा देख सकता है। अगर मामला तीन साल से पुराना हो गया तो उसे खोलने के लिए विभाग के पास ठोस सबूत होना जरूरी होगा। इससे करदाताओं को काफी राहत मिलेगी क्योंकि उन्हें पुराने मामलों के नोटिस मिलने का डर नहीं रहेगा। वे अपने वित्तीय मामलों को ज्यादा अच्छे से प्लान कर सकेंगे और मन में स्थिरता आएगी।
गंभीर मामलों के लिए दस साल की सीमा
लेकिन गंभीर मामलों के लिए समय सीमा थोड़ी ज्यादा रखी गई है। अगर कोई व्यक्ति 50 लाख रुपये से अधिक की आय छिपाता है या बड़ी टैक्स चोरी करता है तो ऐसे मामलों में विभाग दस साल तक कार्रवाई कर सकता है। यानी, गंभीर टैक्स चोरी के मामलों में विभाग को दस साल तक नोटिस जारी करने और जांच करने का अधिकार रहेगा, लेकिन इसके लिए भी ठोस सबूत होना जरूरी होगा। इससे टैक्स चोरी करने वालों को बचने का मौका नहीं मिलेगा, जबकि आम करदाताओं को अनावश्यक परेशानियों से राहत मिलेगी।
पहले के नियम और अब के फैसले में बड़ा फर्क
पहले यह नियम था कि आयकर विभाग छह साल तक के पुराने मामलों को भी खोल सकता था, जो करदाताओं के लिए चिंता का विषय था। लेकिन दिल्ली हाईकोर्ट के इस नए फैसले से यह समय सीमा घटाकर तीन साल कर दी गई है। गंभीर मामलों के लिए यह सीमा दस साल रखी गई है। इससे करदाताओं को लंबे समय तक अनिश्चितता में रहने की जरूरत नहीं पड़ेगी और वे अपने वित्तीय कामों को बेहतर तरीके से संभाल सकेंगे।
मनमर्जी से नोटिस जारी करने पर रोक
दिल्ली हाईकोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि अब आयकर विभाग मनमाने तरीके से नोटिस नहीं भेज सकेगा। सामान्य मामलों में तीन साल बाद नोटिस जारी करना बंद हो जाएगा। लेकिन अगर मामला 50 लाख रुपये से ऊपर के टैक्स चोरी का है तो नोटिस दस साल तक जारी किया जा सकता है। इस फैसले से विभाग को मजबूर किया गया है कि वह बिना मजबूत कारण के कोई भी नोटिस न भेजे और करदाताओं को बेवजह परेशान न करे।
बजट में मिली अन्य कर राहतें
सरकार ने बजट में 12 लाख रुपये तक की आय को टैक्स मुक्त करने के साथ-साथ कई अन्य राहतें भी दी हैं। इसका फायदा मध्यम वर्ग को होगा और उनकी टैक्स देनदारी कम हो जाएगी। सरकार का मकसद ज्यादा से ज्यादा लोगों को टैक्स दायरे में लाना और टैक्स चोरी रोकना है। इससे कर संग्रह बढ़ेगा और करदाताओं को भी सही तरीके से राहत मिलेगी।
करदाताओं के लिए फायदे और सुझाव
इस फैसले से करदाताओं को यह बड़ा फायदा होगा कि अब उन्हें पुराने मामलों के नोटिस का डर नहीं रहेगा, खासकर अगर उन्होंने ईमानदारी से टैक्स भरा है और उनकी रिटर्न तीन साल से पुरानी है। साथ ही करदाताओं को यह सलाह भी दी जाती है कि वे अपने वित्तीय रिकॉर्ड अच्छे से रखें और समय पर टैक्स रिटर्न भरें ताकि भविष्य में कोई परेशानी न हो।
हाईकोर्ट के फैसले का समग्र प्रभाव
दिल्ली हाईकोर्ट के इस फैसले से न केवल करदाताओं को राहत मिलेगी, बल्कि आयकर विभाग की कार्यप्रणाली में भी सुधार होगा। विभाग को अब हर मामले में ठोस सबूत जुटाने होंगे और अपनी कार्रवाई के लिए जवाबदेह रहना होगा। इससे विभाग की कार्यकुशलता बढ़ेगी और करदाताओं का भी विभाग पर भरोसा बढ़ेगा। अंततः यह फैसला भारतीय टैक्स सिस्टम को और पारदर्शी और न्यायसंगत बनाएगा।
इस फैसले से करदाताओं को पुराने मामलों के नोटिस का डर कम होगा, तीन साल की सीमा में सामान्य मामलों की जांच सीमित होगी और गंभीर मामलों के लिए दस साल तक कार्रवाई संभव होगी। पहले विभाग छह साल तक के मामलों को खोल सकता था, लेकिन अब यह सीमा घटकर तीन साल हो गई है, जो करदाताओं के लिए राहत की बात है।
Disclaimer
यह लेख केवल जानकारी के लिए है और इसे कानूनी सलाह नहीं माना जाना चाहिए। कर नियम समय-समय पर बदलते रहते हैं, इसलिए अपने वित्तीय या कर संबंधी फैसले से पहले किसी कर विशेषज्ञ या वकील से सलाह अवश्य लें। इस लेख के आधार पर लिए गए निर्णयों की जिम्मेदारी लेखक या प्रकाशक पर नहीं होगी।